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कविता

प्यार नहीं मैं दूँगा

ब्रजराज तिवारी ‘अधीर’


ले लो मेरे जीवन की सब अभिलाषा,
लेकिन प्रियतम का प्यार नहीं मैं दूँगा,

है याद मुझे उस प्रतिमा का भोलापन,
जिस पर मैं वार चुका अपना यह जीवन
ले लो मेरे जीवन की सभी विजय तुम,
लेकिन वह पहली हार नहीं मैं दूँगा।

सोता आया हूँ चंदा की बाँहों में,
पलता आया प्रिय पलकों की छाँवों में,
जीवित जग देने से इनकार नहीं हैं,
पर सपनों का संसार नहीं मैं दूँगा।

पीड़ाओं से पाता हूँ नई रवानी,
लौटा लेता हूँ भटकी हुई जवानी,
तुम भरा हुआ ले लो अमृत का प्याला,
विष पीने का अधिकार नहीं मैं दूँगा।

 


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